नवादा में जीत का चौका लगा पाएगा एनडीए? विवेक ठाकुर के सामने श्रवण कुशवाहा की कठिन चुनौती, विनोद और गुंजन की एंट्री से रोचक हुआ चुनाव

2024 के लोकसभा चुनाव के पहले चरण में जिन-जिन सीटों पर मतदान होना है, उनमें सबसे खास सीट है नवादा। 19 अप्रैल को होनेवाले चुनाव को लेकर नामांकन खत्म हो चुका है और नवादा के सियासी अखाड़े के पहलवान तय हो चुके हैं।

नवादा में जीत का चौका लगा पाएगा एनडीए? विवेक ठाकुर के सामने श्रवण कुशवाहा की कठिन चुनौती, विनोद और गुंजन की एंट्री से रोचक हुआ चुनाव

NAWADA: 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले चरण में जिन-जिन सीटों पर मतदान होना है, उनमें सबसे खास सीट है नवादा। 19 अप्रैल को होनेवाले चुनाव को लेकर नामांकन खत्म हो चुका है और नवादा के सियासी अखाड़े के पहलवान तय हो चुके हैं। स्थानीय लोगों में चुनाव को लेकर उत्साह है और लोग अब खुलकर चुनावी चर्चा में जुट गये हैं।

नवादा सीट का इतिहास : 2008 में हुए परिसीमन से पहले नवादा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट थी। अनारक्षित सीट होने के बाद नवादा में 2009, 2014 और 2019 यानी कुल तीन चुनाव हो चुके हैं और तीनों बार ही नवादा में एनडीए प्रत्याशी ने अपने-अपने प्रतिद्वन्द्वियों को धूल चटाई है। इस सीट पर दो बार बीजेपी तो एक बार एलजेपी के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है।

विनोद यादव एवं गुंजन सिंह की एंट्री से रोचक हुआ मुकाबला :  बिहार की सभी लोकसभा सीटों की तरह नवादा सीट पर भी एनडीए और महागठबंधन के बीच टक्कर की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन नवादा की सियासत में दमदार उपस्थिति रखने वाले पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव के भाई विनोद यादव एवं भोजपुरी सुपर स्टार गुंजन सिंह की एंट्री ने मुक़ाबले को रोचक बना दिया है। एनडीए की ओर से यहां बीजेपी के विवेक ठाकुर ताल ठोक रहे हैं, तो लालू ने यहां कुशवाहा कार्ड खेलते हुए श्रवण कुशवाहा को मैदान में उतारा है। लेकिन जिस तरह से विनोद यादव के नामांकन में जिले के कई विधायक शामिल हुए वो महागठबंधन की चिंता बढ़ानेवाला है। वहीं गुंजन सिंह भूमिहार समाज और युवा वर्ग में अपनी लोकप्रियता क़े चलते काफी चर्चा में हैं। वहीं चार अन्य उम्मीदवार बहुजन समाज पार्टी क़े रंजीत कुमार ,भारत जनजागरण दल क़े आनंद कुमार वर्मा ,पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया (डेमोक्रेटिक) क़े गनौरी पंडित , भागीदारी पार्टी ,गौतम कुमार बबलू भी चुनाव मैदान में हैं।

नवादा में जातिगत समीकरण : नवादा में मतदाताओं की कुल संख्याा 20लाख 06 हजार 124 है। जिसमें 10 लाख 43 हजार 788 पुरुष मतदाता और महिला मतदाताओं की संख्या 09 लाख 02हजार 186 है। इसके अलावा थर्ड जेंडर के भी 150 मतदाता हैं। जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां भूमिहार और यादव किसी की हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। कई क्षेत्रों में वैश्य समाज और मुस्लिम वोटर्स का दबदबा है, तो अति पिछड़े और दलित वोटर्स भी बड़ी संख्या में हैं।

क्या एनडीए लगाएगा जीत का चौंका : अनारक्षित होने के बाद नवादा लोकसभा के चुनावी इतिहास पर नजर डाली जाए तो एनडीए का पलड़ा भारी रहा है और एनडीए के टिकट पर तीनों बार भूमिहार जाति के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। इस फैक्टर को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने इस बार भी भूमिहार समाज से ही विवेक ठाकुर को कमल खिलाने की जिम्मेदारी दी है ,तो लालू ने कुशवाहा कार्ड खेलते हुए श्रवण कुशवाहा को अपना उम्मीदवार बनाया है।

दिलचस्प मुकाबले के आसार : फिलहाल आरजेडी का कुशवाहा दांव उलटा पड़ता दिख रहा है, क्योंकि जिले की सियासत में मजबूत पैठ रखने वाले राजबल्लभ प्रसाद यादव के भाई विनोद यादव ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन कर दिया है। विनोद यादव के साथ स्थानीय आरजेडी नेताओं-कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज नजर आ रही है। वहीं भूमिहार वोट और युवा वर्ग में भोजपुरी स्टार गुंजन सिंह भी पकड़ बनाने में लगे हैं। ऐसे में इस सीट पर रोमांचक  मुकाबला होना निश्चित है और एनडीए  जीत का चौका लगा दे,तो कोई हैरानी नहीं होगी।

विवेक ठाकुर को भूमिहारों मतदाताओं पर भरोसा :  पिछले तीन चुनावों की बात करें तो इस सीट से भूमिहार जाति के कैंडिडेट ने ही जीत दर्ज की है. 2014 में बीजेपी के भोला प्रसाद सिंह, 2014 में बीजेपी के गिरिराज सिंह और 2019 में एलजेपी के चंदन सिंह ने जीत दर्ज की, तो इस बार भी बीजेपी ने भूमिहार समाज से विवेक ठाकुर को अपना कैंडिडेट बनाया है। विवेक ठाकुर को भी भरोसा है कि उन्हें अपने समाज का एकमुश्त वोट मिलेगा और वो नवादा में कमल खिलाने में कामयाब होंगे। वहीं गुंजन सिंह भी अपनी लोकप्रियता क़ो लेकर सुर्खियों में हैं और चुनाव क़ो दिलचस्प बना दिया है।

कुशवाहा कार्ड पर भारी पड़ सकती है बगावत :  पिछले तीन चुनावों से जीत को तरस रहे महागठबंधन ने इस बार कुशवाहा कार्ड खेलते हुए श्रवण कुशवाहा को नवादा के चुनावी मैदान में उतार दिया है। लालू को भरोसा था कि यादव और कुशवाहा के गठजोड़ के दम पर वो इस बार एनडीए के पटखनी दे देंगे,लेकिन पार्टी के पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव के भाई विनोद यादव ने बगावत कर डाली और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में ताल ठोक दी है।

नवादा की सियासत में राजबल्लभ का रसूख : जिले की सियासत में रसूख रखने वाले राजबल्लभ यादव तो नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में आजीवन कारावास काट रहे हैं, लेकिन उनकी पत्नी विभा देवी नवादा से विधायक हैं और विनोद यादव के नामांकन में खुद मौजूद भी रहीं। इतना ही नहीं विनोद यादव के नामांकन के दौरान जिला परिषद अध्यक्षा पुष्पा देवी और उपाध्यक्षा निशा चौधरी, सदस्य उमेश यादव समेत कई जिला परिषद सदस्य के अलावा निर्दलीय एमएलसी अशोक यादव और रजौली विधायक प्रकाशवीर भी मौजूद थे। विनोद के नामांकन के समय उमड़ी भीड़ ने ये जता दिया कि इस बार भी महागठबंधन के लिए नवादा की लड़ाई आसान नहीं रहनेवाली है।

नवादा लोकसभा सीट 2009 से अब तक : अनारक्षित होने के बाद इस सीट पर 2009 में हुए चुनाव में बीजेपी के भोला प्रसाद सिंह ने एलजेपी की वीणा देवी को हराकर जीत दर्ज की। 2014 के मोदी लहर में बीजेपी ने नवादा से फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह को मौका दिया और गिरिराज सिंह ने आरजेडी के राजबल्लभ प्रसाद को 1 लाख 40 हजार वोट के बड़े मार्जिन से मात दी। 2019 के चुनाव में इस सीट से एनडीए के बैनर तले एलजेपी के चंदन कुमार सिंह ने चुनाव लड़ा और आरजेडी की विभा देवी को 1 लाख 48 हजार से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी।

नवादा अपनेआप में कई ऐतहासिक धरोहरों क़ो है समेटे  : अपने आंचल में कई ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे नवादा खुरी नदी के उत्तर में बसा एक शहर है, जो 1973 में गया जिले से अलग होकर स्वतंत्र जिला बना। जिले में कई प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं , जिनमें नवनिर्मित 108 फिट ऊंची भगवान बुद्ध की प्रतिमा, सीतामढ़ी गुफा मंदिर ,हिसुआ स्थित कामगार खां का मकबरा ,गोवर्धन मंदिर ,शोभनाथ मंदिर ,पंचमुखी महादेव मंदिर, संकट मोचन मंदिर, गुनावां का जल मंदिर और बोलता पहाड़ हैं। इसके अलावा यहां का ककोलत शीतल झरना लोगों को अनायास ही यहां खींच लाता है।

अभी भी है विकास की दरकार : सिंचाई संसाधनों के घोर अभाव के बावजूद अभी भी जिले की करीब 75 फीसदी आबादी खेती पर ही निर्भर है। नवादा लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं जिनमें नवादा जिले से नवादा, हिसुआ, वारिसलीगंज, गोविंदपुर व रजौली, जबकि शेखपुरा जिले से बरबीघा विधानसभा सीट शामिल है। कई सालों तक जिले का अधिकांश हिस्सा नक्सली प्रभावित भी रहा और जिले को कई क्षेत्रों में अभी भी विकास की दरकार है।

नवादा से सुनील कुमार की रिपोर्ट