विपक्षी एकजुटता का केजरीवाल FORMULA नीतीश कुमार से अलग है, दिल्ली के सीएम ममता से मुलाकात करेंगे खुलासा
Opposition Unity: नीतीश कुमार की विपक्षी एकता मुहिम से अलग अरविंद केजरीवाल की अवधारणा है। वे चाहते हैं कि मुद्दों पर आधारित विपक्षी एकता पहले होनी चाहिए। अध्यादेश जब कानून बनाने के लिए राज्यसभा में पेश किया जाए तो इसका विपक्ष विरोध करे। राज्यसभा में विपक्षी सदस्य बीजेपी से अधिक हैं।
NBC24 DESK;- बिहार के सीएम नीतीश कुमार अपने डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव के साथ दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेता सीएम अरविंद केजरीवाल से मिले। बता दे ट्रांसफर-पोस्टिंग पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने वाले केंद्र सरकार के अध्यादेश से तिलमिलाए केजरीवाल के साथ खड़े होने का भरोसा दिया।आपको बता दे कि विपक्षी एकता की मुहिम पर बात करने, लेकिन मुद्दा केंद्र सरकार का अध्यादेश बन गया। केजरीवाल ने विपक्षी एकता का पहला टेस्ट संसद में करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि राज्यसभा में विपक्षी दल एकजुट होकर अध्यादेश का विरोध करें, ताकि यह कानून का रूप न ले सके। केजरीवाल ने यह भी घोषणा की कि वे पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से मंगलवार को कोलकाता जाकर मुलाकात करेंगे।
'आप' ने किया है अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान
आपो बता दे कि कर्नाटक में सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह से लौटते वक्त नीतीश दिल्ली पहुंचे थे। वहीं कर्नाटक में विपक्षी नेताओं के जमावड़ा से उत्साहित नीतीश ने एक बार फिर केजरीवाल को टटोलना चाहा। हालांकि पहली बार की मुलाकात के बाद आम आदमी पार्टी ने साफ कर दिया था कि उसे विपक्षी एकता से कोई लेना-देना नहीं है। 'आप' के महासचिव संदीप पाठक ने केजरीवाल से नीतीश की मुलाकात के बाद 21 अप्रैल को ही स्पष्ट कर दिया था कि उनकी पार्टी 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले अपने दम पर लड़ेगी। किसी के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी। वहीं राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर समान विचारधारा वाले दलों के साथ रहेगी। साथ ही यह भी बता दे कि संदीप पाठक का यह बयान तब आया था, जब कांग्रेस ने विपक्षी एकता के लिए नीतीश कुमार और शरद पवार को बारी-बारी से बुलाया था। दोनों नेताओं ने दिल्ली पहुंच कर मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात की थी। वाम दलों के नेता सीताराम येचुरी और डी राजा से भी खरगे ने बात की थी। नीतीश ने भी दोनों वामपंथी नेताओं से अलग-अलग बात की थी। कर्नाटक की जीत को विपक्ष अपनी जीत मान रहा हैं।
दरअसल कर्नाटक विधानसभा की त्रिकोणीय लड़ाई में कांग्रेस की जीत को विपक्ष अपनी जीत मान रहा है। विपक्षी दलों को एकजुट करने के अभियान में लगे नीतीश कुमार या कांग्रेस यह भूल जा रहे हैं कि जेडीएस भी विपक्षी दलों में ही शुमार है, जिसको चुनाव में किंग बनने का अवसर तो नहीं मिला, KINGMAKER लायक भी कांग्रेस ने उसे नहीं छोड़ा। गौरतलब है ,कर्नाटक की जमीन पर विपक्षी दलों के नेता विपक्षी एकता की जरूरत पर मशविरा कर रहे थे, लेकिन ऐसा करते समय वे भूल गए कि ऐसे ही हालात दूसरे राज्यों में भी होंगे। खासकर दिल्ली, यूपी और बंगाल में। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लिए कांग्रेस या दूसरे दल बीजेपी की तरह ही दुश्मन हैं। बंगाल में ममता बनर्जी के लिए कांग्रेस और वाम दल भी भाजपा की तरह खतरनाक हैं। यूपी में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से तालमेल कर अपना हाल देख लिया है।खबर है,समाजवादी पार्टी के नेता और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव अभी तक दुविधा में पड़े दिख रहे हैं। वे नीतीश और लालू यादव से मिलते हैं तो कभी कूद कर केसी राव और एमके स्टालिन के साथ खड़े हो जाते हैं। कांग्रेस से उनकी सीधी बातचीत नहीं हो रही। शायद पिछले अनुभव को देखते हुए वे तय नहीं कर पा रहे कि क्या करना चाहिए। उनके सामने दुविधा यह भी होगी कि विपक्षी दलों के साथ नहीं गए तो वोटों का बंटवारा हो जाएगा। गौरतलब है , इसका सीधे फायदा बीजेपी को होगा। मायावती ने विपक्षी एकता पर चुप्पी साध ली है। मायावती की बसपा के साथ जाकर भी अखिलेश यादव बीजेपी से आजमा चुके हैं। कामयाबी के बजाय उन्हें नुकसान ही उठाना पड़ा।
यूपी में जितने मोर्चे खुलेंगे, बीजेपी को फायदा
साथ ही आपको बट्टे चले कि यूपी में एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने पहले से ही मोर्चा खोल दिया है। यानी मुस्लिम वोटों में विभाजन का एक किरदार बीजेपी को पहले से ही मिल चुका है। यहाँ बसपा सुप्रीमो मायावती के अभी तक के रुख से तो यही स्पष्ट होता है कि उनका भी खेमा अलग ही रहेगा। बता दे अगर कांग्रेस और सपा में तालमेल नहीं बैठ पाया तो बीजेपी की बल्ले-बल्ले हो जाएगी। इसलिए कि विरोधी खेमे के वोट बंटने का सीधा लाभ बीजेपी को ही मिलेगा। हाल के निकाय चुनावों से भी यह संकेत मिलता है कि विपक्ष के बंटे रहने का कैसे उसे फायदा मिलता है।