पीएम नरेंद्र मोदी के जापान, पापुआ न्यू गिनी और ऑस्ट्रेलिया दौरे से ये हासिल होगा....
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 19 मई से 24 मई के बीच जापान, पापुआ न्यू गिनी और ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर रहेंगे.
NBC24 DESK:- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 19 मई से 24 मई के बीच जापान, पापुआ न्यू गिनी और ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर रहेंगे.
इस शुक्रवार से जापान के हिरोशिमा में जी-7 का सम्मेलन हो रहा है जो 21 मई तक चलेगा. पीएम मोदी शुक्रवार को जापान पहुंच जाएंगे.
जी-7 के सदस्य देश हैं - जापान, इटली, कनाडा, फ़्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी.
भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि जी-7 की बैठक में पीएम मोदी अन्य देशों के साथ शांति, स्थिरता, खाद्यान्न, ऊर्जा और उर्वरक जैसे मुद्दों पर बात करेंगे.
जापान के बाद पीएम मोदी पापुआ न्यू गिनी जाएंगे जहां वो 'इंडिया-पैसिफ़िक आइलैंड्स को-ऑपरेशन' सम्मेलन में भाग लेंगे. इसके बाद वो ऑस्ट्रेलिया जाएंगे.
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में क्वॉड की बैठक होनी थी. इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, जापान के प्रधानमंत्री फ़ुमियो किशिदा भी हिस्सा लेने वाले थे.
लेकिन बुधवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का दौरा अमेरिका में चल रहे गंभीर आर्थिक संकट को देखते हुए रद्द कर दिया गयI
इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ ने बताया कि क्वॉड की बैठक भी रद्द कर दी गई है.
हिरोशिमा क्यों अहम है?
हिरोशिमा शहर के ऐतिहासिक मायने हैं. दूसरे विश्व युद्ध में परमाणु हमले से तबाह हुए इस शहर में साल 1957 में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू गए थे.
नरेंद्र मोदी वहां जाने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री हैं.
फ़ुमियो किशिदा के लिए भी हिरोशिमा अहम है क्योंकि वह ख़ुद इस शहर से हैं. मध्य हिरोशिमा ही उनका चुनावी क्षेत्र है.
हिरोशिमा में पीएम मोदी की मौजूदगी इसलिए भी अहम है क्योंकि भारत परमाणु अप्रसार संधि यानी एनपीटी में शामिल नहीं है.
दरअसल, परमाणु अप्रसार संधि में वही देश शामिल हैं जिन्होंने 1 जनवरी, 1969 से पहले परमाणु हथियार विकसित कर लिए थे. इसके बाद जिन देशों ने परमाणु परीक्षण किया या हथियार विकसित किए उन्हें इसमें शामिल नहीं किया गया.
भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया ऐसे देश हैं जिन्होंने खुल कर परमाणु हथियार संपन्न होने की बात कही है, लेकिन ये देश एनपीटी पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में शुमार नहीं हैं.
बैठक में कौन-कौन से देश और संगठन हिस्सा लेंगे
पीएम मोदी जी-7 देशों के प्रतिनिधियों के साथ हिरोशिमा के शांति स्मारक पर भी जाएंगे. इसे परमाणु हमले में मारे गए लोगों की याद में बनाया गया है.
आपको बता दे कि प्रधानमंत्री मोदी इससे पहले जी-7 की बैठक में तीन बार शामिल हो चुके हैं.
इस शिखर सम्मेलन में इस बार जी-7 देशों के अलावा यूरोपीय यूनियन, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, इंडोनेशिया (आसियान समूह का सदस्य), कुक आइलैंड (पैसिफ़िक आइलैंड्स फ़ोरम का सदस्य), दक्षिण कोरिया, वियतनाम को भी बुलाया गया है.
इन देशों के अलावा इसमें कई वैश्विक संगठन जैसे आईएमएफ़, यूएन, डब्ल्यूटीओ भी शामिल होंगे.
आइए जाने कि मोदी के लिए ये दौरा अहम क्यों?
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में 'अंतरराष्ट्रीय राजनीति, संगठन और निरस्त्रीकरण केंद्र' के प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं, "भारत को एक समय में गुटनिरपेक्ष समूह का नेता माना जाता था, इसमें तीसरी दुनिया के देश शामिल होते थे. वे देश जिन्हें आज 'ग्लोबल साउथ' का नाम दिया जाता है. आज भारत उभरती हुई महाशक्तियों जैसे- चीन, रूस और पहले से स्थापित महाशक्तियों जैसे- अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय देशों के साथ बात करता हुआ नज़र आता है."
"जी-7 में भारत को बीते कुछ साल से बुलाया जा रहा है, लेकिन इस बार उसकी स्थिति और भी मज़बूत है क्योंकि वहां वो जी-20 के अध्यक्ष देश के रूप में शामिल हो रहा है. आज के समय में जी-20, जी-7 से ज़्यादा प्रभावशाली समूह है. यहां सिर्फ़ यही चर्चा नहीं होगी कि जी-7 क्या करेगा, बल्कि जी-7 जब जी-20 में आएगा तो वो क्या कर सकता है, इस पर भी भारत के प्रधानमंत्री बात करेंगे."
आपको बता दे कि प्रोफ़ेसर सिंह कहते हैं, "जो जी-7 के देश या अन्य देश इस बैठक में शामिल हो रहे हैं, उसमें अमेरिका और कनाडा को छोड़ दें तो बाक़ी सभी देशों की अर्थव्यवस्था निगेटिव ग्रोथ में जा रही है. वहां जो भी देश मिल रहे हैं, उसमें भारत ऐसा देश है जिसकी आर्थिक वृद्धि दर सबसे तेज़ है. ये सारी बातें भारत को अहम बनाती हैं."
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भारत की कोशिश होगी कि वो इस सम्मेलन में जी-7 के देशों से अधिक से अधिक ज़रूरी मुद्दों पर समर्थन जुटाए.
जी-7 शिखर सम्मेलन में जी-20 के 12 देश शामिल हो रहे हैं. साथ ही पीएम मोदी कई देशों के साथ द्विपक्षीय बातचीत कर सकते हैं.
भारत-जापान के रिश्ते:
साल 1952 में भारत और जापान के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए थे. लेकिन जब भारत ने 1974 में पोखरण में परमाणु परीक्षण किया तो दोनों देशों के बीच रिश्ते बुरी तरह प्रभावित हुए.
मई 1998 में हुए भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण की भी जापान ने निंदा की थी.
लेकिन साल 2000 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री योशिरो मोरी के दिल्ली दौरे के साथ ही दोनों देशों के रिश्तों के संभलने की शुरुआत हो गई थी.
मौजूदा वक़्त की बात करें तो जनवरी 2023 में भारत और जापान के बीच 'वीर गार्डियन 2023 एयर कॉम्बैट' अभ्यास हुआ
यह दोनों देशों के बीच इस तरह का पहला अभ्यास था.
जापान के एयरफ़ोर्स ने इसे लेकर बयान जारी करते हुए कहा, "यह अभ्यास आपसी समझ बढ़ाने, वायु सेनाओं के बीच रक्षा सहयोग मज़बूत करने और सामरिक कौशल बढ़ाने के लिए किया गया."
इससे पहले जापान ने इस तरह के अभ्यास अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी के साथ ही किया था.
जापान के "फ़्री एंड ओपेन इंडो-पैसेफ़िक विज़न" में भारत उसका अहम पार्टनर है.
कहा जाता है कि एशिया में चीन की बढ़ती आक्रामकता के कारण जापान भारत से रक्षा संबंध मज़बूत करना चाहता है.
वैसे भारत की रूस से दोस्ती को लेकर जापान थोड़ा असहज रहा है, लेकिन इसके बावजूद भारत और जापान के बीच नज़दीकियां बीते दशकों में बढ़ी हैं.
भारत की विदेश नीति में आया बदलाव
भारत ने बीते कुछ सालों में अपनी विदेश नीति के ज़रिए ये साफ़ कर दिया है कि वो किसी अन्य देश के दबाव में न आते हुए और अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए ही कोई रुख़ अपनाएगा.
रूस-यूक्रेन युद्ध इसका सबसे बड़ा उदाहरण रहा है, जहां भारत ने पश्चिमी देशों के दबाव और आलोचना को दरकिनार करते हुए रूस से तेल ख़रीदना जारी रखा.
प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं, "भारत दुनिया के लिए एक अहम देश है क्योंकि उसके अमेरिका से भी अच्छे संबंध हैं और रूस से भी रिश्ते बेहतर हैं. चीन और भारत के बीच तनाव ज़रूर है, लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी जी-20 में शामिल होने आएंगे. एक कमरे में रूस, अमेरिका, चीन को लाने का दम और नीति भारत ही रखता है."
"अगर जी-20 सम्मेलन कनाडा में होता तो काफ़ी हद तक ये संभव था कि रूस इसमें शामिल नहीं होता और शायद चीन भी कनाडा नहीं जाता. लेकिन भारत की वजह से ये संभव हो पाएगा कि वर्तमान समय में जो देश खुल कर एक-दूसरे के विरोधी हैं, वे भी एक मंच पर साथ हो सकते हैं."
पापुआ न्यू गिनी का दौरा अहम क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एशिया प्रशांत क्षेत्र के देश पापुआ न्यू गिनी जाने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं.
यहां पीएम मोदी 22 मई को होने वाले 'इंडिया-पैसिफ़िक आइलैंड्स को-ऑपरेशन' सम्मेलन के सह-अध्यक्ष होंगे.
2014 में इंडिया-पैसिफ़िक आइलैंड्स को-ऑपरेशन की शुरुआत हुई थी.
इसमें भारत और 14 प्रशांत द्वीपीय देश- फ़िजी, पापुआ न्यू गिनी, टोंगा, तुवालु, किरिबाती, समोआ, वानुआतु, नीयू, माइक्रोनेशिया, मार्शल द्वीप समूह, कुक द्वीप समूह, पलाऊ, नाउरू और सोलोमन द्वीप शामिल हैं.
1.5 करोड़ की आबादी वाले देश पापुआ न्यू गिनी का दौरा इसलिए भी अहम है क्योंकि यहां चीन का काफ़ी प्रभाव है.
चीन ने 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' के तहत यहां निवेश किया है. चीन और पापुआ न्यू गिनी के बीच फ़्री ट्रेड डील भी हो चुकी है.
ऐसे में भारत का ये दौरा इस क्षेत्र के देशों के साथ संबंध बढ़ाने की कोशिश मानी जा रही है.
प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं, "दक्षिण प्रशांत महासागर में ये 14 देश और सात टेरेटरी हैं. 2006 से चीन लगातार इन देशों में निवेश कर रहा है. साल 2006 में चीन ने इन देशों के साथ एक फ़ोरम बनाया और तब से ही चीन का इस क्षेत्र में प्रभाव है. यहां चीन ने पहले अपना व्यापार और निवेश ख़ूब बढ़ाया. इसके बाद चीन इसका सामरिक इस्तेमाल करने लगा."
बीते साल अमेरिका ने यूएस-पैसिफ़िक आइलैंड्स देशों का शिखर सम्मेलन आयोजित किया था.
इसमें शामिल होने के लिए इन देशों के प्रतिनिधि वॉशिंगटन पहुंचे थे.
वहां अमेरिका ने इस क्षेत्र के आर्थिक सहयोग, समुद्री सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन संकट से निपटने के लिए 80 करोड़ डॉलर ख़र्च करने की बात कही थी.
इसके बाद ये एलान हुआ कि अमेरिकी राष्ट्रपति जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने से पहले पापुआ न्यू गिनी जाएंगे.
हालांकि घरेलू वित्तीय संकट की वजह से अब उनका ये दौरा रद्द हो चुका है. लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पापुआ न्यू गिनी जा रहे हैं.
बाइडन का दौरा रद्द होने से भारत को फ़ायदा
स्वर्ण सिंह मानते हैं कि जो बाइडन की यात्रा रद्द होने से भारत को फ़ायदा हुआ है.
वो कहते हैं, "अब जब मोदी ही वहां जा रहे हैं तो उनके दौरे को अधिक तवज्जो मिलेगी. भारत इन देशों के साथ बेहतर तरीक़े से बातचीत कर ऐसी डील कर सकता है जिससे दोनों पक्षों को फ़ायदा हो. अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे से भारत को शायद तसल्ली से बातचीत करने का इस तरह मौक़ा न मिल पाता."
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन जी-7 में तो शामिल होंगे, लेकिन उनका ऑस्ट्रेलिया दौरा रद्द हो चुका है. उसके बाद सिडनी में होने वाली क्वॉड की बैठक भी रद्द कर दी गई है. बाइडन ने अपना दौरा अमेरिका में चल रहे आर्थिक संकट को देखते हुए रद्द किया है.
अमेरिका के वित्त विभाग के मुताबिक़, "अमेरिकी सरकार के पास एक जून के बाद फ़ंड ख़त्म हो जाएगा. इसका मतलब है कि बूढ़े लोगों की पेंशन रूकेगी, सरकारी कर्मचारियों को वेतन मिलने में देरी होगी, सेना के लोगों को तनख़्वाह मिलने में देरी होगी. साथ ही अमेरिकी ब्याज दरों में ज़बर्दस्त उछाल आ सकता है."
राष्ट्रपति बाइडन के साथ रिपब्लिकन और डेमोक्रैट नेताओं की व्हाइट हाउस में मंगलवार को मुलाक़ात हुई.
इस बैठक के बाद भी दोनों पक्षों के बीच अब तक ऐसी कोई डील नहीं हो सकी है जिससे एक जून तक देश की क्रेडिट लिमिट (क़र्ज़ लेने की क्षमता) बढ़ाई जा सके.
इसे देखते हुए अमेरिका ने बाइडन का दौरा रद्द करने का एलान किया है|