टापू पर गांव: गया के इस गांव में चारों तरफ से है नदी, बीच में है गांव, शादियों के लिए नदी में श्रमदान से रोड बनाते हैं ग्रामीण महिला पुरुष

बिहार की राजधानी पटना से 185 किलोमीटर दूर और जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर की दूरी पर है गया का भगहर गांव। यह गांव एक तरह से टापू पर स्थित है, क्योंकि इस गांव के चारों ओर नदी है। साल के 7-8 महीने यह गांव नदियों के पानी में से घिरा रहता है।

टापू पर गांव: गया के इस गांव में चारों तरफ से है नदी, बीच में है गांव, शादियों के लिए नदी में श्रमदान से रोड बनाते हैं ग्रामीण महिला पुरुष

GAYA: बिहार की राजधानी पटना से 185 किलोमीटर दूर और जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर की दूरी पर है गया का भगहर गांव। यह गांव एक तरह से टापू पर स्थित है, क्योंकि इस गांव के चारों ओर नदी है। साल के 7-8 महीने यह गांव नदियों के पानी में से घिरा रहता है। करीब 200 घर हैं, 800 की आबादी है, लेकिन कई दशक बीत गए लेकिन एक अदद पुल इस गांव के लिए नहीं बन सका। यह जानकर आश्चर्य होगा, कि यहां लोग हर साल श्रमदान से नदी में सड़क बनाते हैं, ताकि वह अपनी बेटियों-बेटों की शादी कर सकें। सड़क बनाने के लिए ग्रामीण पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है।

गया का भगहर गांव जिला मुख्यालय से करीब 80-85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह इमामगंज प्रखंड अंतर्गत आता है, लेकिन साल के सात -आठ महीने यह गांव मुख्यालय से कटा रहता है, क्योंकि यहां महीनो तक नदी में पानी रहता है। यह गांव चारों ओर से नदी से घिरा है। चार पांच नदियां बहकर आती है। बीच में भगहर गांव है। यूं कहे, तो टापू पर यह गांव स्थित है। यहां पर लोग कई दिनों -महीना तक पानी से घिरे रहते हैं। इन नदियों में पानी भी इस तरह आती है, कि यदि उसे पार कर सड़क पहुंचने की कोशिश की जाए, तो नसीब में मौत आती है। इस डर से लोग बरसात के दिनों में तो अपने घरों से नहीं ही निकलते, बल्कि उसके बाद भी यदि पानी रहता है, तो उन महीनो में भी इनका आना -जाना कम रहता है। इस गांव की आबादी 800 से अधिक है, 200 घर हैं, लेकिन उनकी मुश्किलों की ओर न तो सरकार- प्रशासन का ध्यान है।

यहां विवाह पर आफत है। बेटियों- बेटों की शादी मुश्किलों में होती है। क्योंकि यहां लड़के वाले बारात नहीं लाते, क्योंकि रास्ते में नदी है और वहां पार नहीं हो सकते। वही, कोई यहां अपनी बेटियों को नहीं देना चाहता। इसका कारण यह है कि उनकी बेटियों का भविष्य सुरक्षित उन्हें महसूस होता है, कि जिस गांव के लोग घरों से कई महीनो तक नहीं निकलते, उस गांव में कोई बेटी नहीं देना चाहता। वही यहां बारात नहीं आ सकती। इसलिए कोई यहां की बेटी से शादी भी नहीं करना चाहता है। इस समस्या के समाधान के लिए ग्रामीणों ने मंथन कर हाल के कई सालों से नयई तरकीब निकाली है और यह तरकीब होती है नदी में सड़क बनाने की। अब कई वर्ष हुए हैं, जब नदी में हर साल सड़के बनाई जाती है।

 यहां के लोगों ने पिछले कई सालों से तरकीब निकाली है और वह यह है कि जब लगन का महीना होता है और नदी में पानी सूखी होती है, तो ग्रामीण ताबड़तोड़ श्रमदान कर नदी में सड़क बनाते हैं। करीब डेढ़ किलोमीटर लंबी नदी में ग्रामीण सड़क बनाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है, कि ग्रामीण पुरुषों के अलावा महिलाएं भी कंधे से कंधे मिलाकर श्रमदान कर सड़के बनाती है और तब जाकर फिर शादी की बात की शुरुआत होती है। इसके बाद गांव में बारात आती है और गांव से बारात निकलती भी है, लेकिन उसके लिए इन ग्रामीणों के नसीब में नदी में पानी सूखने और लगन के महीने का इंतजार करना होता है।

यहां की महिला चिंता कुमारी, कांति देवी बताती है कि हमारे गांव में हजार की आबादी है, लेकिन एक पुल नहीं होने के कारण हम लोगों को अपने घरों से निकलना मुश्किल हो जाता है। यह गांव चारों ओर से नदियों से घिरा है और सात महीने यह गांव पानी से चारों ओर से घिरा रहता है। इस नदी में पानी है तो उसे पर करना भी खतरनाक होता है, क्योंकि कब वह तेज हो जाए और बहाकर लेकर चले जाने का डर बना रहता है। इसे लेकर कई दिनों तक बिना नमक के तेल, दवा के रहना पड़ता है। सरकार ध्यान नहीं देती है। प्रशासन से गुहार लगाते थक चुके हैं। जैसे ही पानी पड़नी शुरू होती है, उसके बाद से कई महीने यहां गांव में पानी रहता है। इस वर्ष पानी कुछ काम हुआ है, तो दिसंबर महीने में ही हम लोग सड़क बना रहे हैं। महिलाएं भी सड़क बनाने का काम करती है। श्रमदान करती है। सुखाङ के कारण नदी में पानी नहीं है, तो इस वर्ष मौका मिला है कि पहले ही हम लोग श्रमदान कर सड़क बनाएं। यदि सुखाङ नहीं होता, तो फरवरी मार्च के महीने में श्रमदान का सड़क बनाते। अभी फिलहाल में हर साल श्रमदान कर सड़क बनाते हैं। बताते हैं कि औसतन हर साल जून जुलाई के महीने से यहां पानी आ जाता है। चारों ओर से रही नदियों में पानी भर जाता है और यह पानी सामान्य तौर पर जनवरी के बाद ही सूखता है और फिर हम लोग यहां सड़क बनाते हैं, जो कि चार-पांच महीना के लिए होता है और इस दौरान हम लोग शुभ काम करते हैं। शादियां विवाह भी इसी महीने में होती है। यदि सड़क नहीं बनती तो शादियां नहीं हो पाती है। इस तरह शादियां करने के लिए और शुभ काम करने के लिए कोई जरूरी काम निपटाने के लिए हम लोग पानी कम होने के इंतजार के लिए प्रार्थना करते हैं। जैसे ही पानी सूख जाती है, तो फिर श्रमदान से सड़क बनाते हैं।

गांव के लोगों में गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि यहां सिर्फ लोग वोट लेने के लिए लेने के लिए आते हैं। मुखिया से लेकर विधायक, सांसद तक के लिए वोट मांगने लोग आते हैं, लेकिन जैसे ही जीतते हैं, फिर गांव में देखने नहीं आते हैं। इतनी बहुल आबादी होने के बावजूद इतने बड़े इस गांव पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ग्रामीणों में इस बात को लेकर काफी गुस्सा भी दिखता है और कहते हैं यदि अगली बार चुनाव आया तो वे लोग वोट नहीं देंगे। पहले अपने बेटी बेटियों की भविष्य को लेकर पुल की मांग करेंगे। मांग पूरी होती है, तो ही प्रशासन को गांव में घुसने देंगे।

भगहर गांव के अरुण कुमार दांगी, देवंती देवी, कृष्णा प्रसाद, नरेश प्रसाद बताते हैं कि यदि गांव में कोई गंभीर रूप से बीमार हो गया, वह भी पानी के मौसम में तो उसकी मौत निश्चित है। क्योंकि उसका ठीक से इलाज नहीं हो पाता है। मरीज ठीक नहीं हो पाता, ऐसे में उसकी जान नहीं बच पाती है। हम लोग अब हर साल जब लग्न का महीना आता है तो और नदी सूखी होती है तो, गांव में चंदा करके रुपए इकट्ठा करते हैं और फिर उस रुपए से मिट्टी आदि मंगवाते हैं। ट्रैक्टर से मिटटी मंंगवाते हैं और फिर श्रमदान कर खुद नदी में सड़क बनाते हैं। इस तरह कई कुछ महीनो के लिए यह सड़क हमारे लिए राहत के समान होती है और हम शादी विवाह समेत कई कामों को निपटाते हैं। हमारे लिए यही समय उपयोगी है, बाकी शेष महीने बेकार साबित हो जाते हैं। यह नक्सल प्रभावित इलाका है और यहां विकास नहीं हो पाया, जबकि आबादी हजारों में है, हमारे विधायक जीतन राम मांझी भी कोई ध्यान नहीं देते हैं।

इमामगंज के भगहर गांव के लोगों की मांग पर पुल निर्माण को प्राथमिकता में रखा गया है। वर्ष 2018 से में ही इसके लिए प्रयास जारी है। फिर से इसे रिमाइंड किया जाएगा।

गया से अभिषेक कुमार की रिपोर्ट