बिहार में पुल, सड़क के बाद तालाब की चोरी, रातों-रात मिट्टी भरकर भू-माफियाओं ने बनाई झोपड़ी
दरभंगा शहर के विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र के वार्ड संख्या चार स्थित नीम पोखर स्थित सरकारी करीब 36 डिस्मिल तालाब को भू-माफिया ने रातों-रात चोरी छुपे मिट्टी भरकर समतल बना दिया..
DARBHANGA: बिहार अपने अजीबोगरीब कारनामों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहता है। कभी चारा घोटाला, तो कभी अलकतरा घोटाला, तो कभी सृजन घोटाला, तो कभी सड़क की चोरी, तो कभी बंद हाजत में चूहों के द्वारा शराब पी जाना... ताजा मामला दरभंगा की पहचान तालाब चोरी की है। इन दिनों दरभंगा शहर में भू माफियाओं का कहर इस प्रकार बड़प रहा है कि " पग-पग पोखरि माछ मखान, मधुर बोली मुख में पान" के कहावत से दरभंगा जिला को पोखर के शहर के नाम से गौरवाशाली पहचान दिलाने वाले को मिटाने पर लगे है। भू माफियाओं का बोलबाला इस प्रकार हो गया है कि प्रशासनिक मिली भगत से रातों-रात तालाब की चोरी कर लेते हैं और उसपर बड़े बड़े इमारत खड़े करवा देते हैं।
ताजा मामला शहर के विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र के वार्ड संख्या चार स्थित नीम पोखर स्थित सरकारी करीब 36 डिस्मिल तालाब को भू-माफिया ने रातों-रात चोरी छुपे मिट्टी भरकर समतल बना दिया। इस जमीन पर अब अपना कब्जा जमाने के लिए वहां एक झोपड़ी तथा बांस की चारदीवारी भी बना दिया हैं। लोगों का आरोप है कि प्रशासन की मिलीभगत से तालाब को भर दिया गया। वही दरभंगा में तालाबों की संख्या की बात की जाए तो दरभंगा राज व पुराने रिकॉर्ड के अनुसार पूरे जिला में 9 हजार 1 सौ 13 तालाब थे। उसमे से सिर्फ दरभंगा शहर में सरकारी दस्तावेजों के अनुसार 350 से 400 तालाब थे। लेकिन समय-समय पर भू माफिया सरकारी तंत्र के सहारे तालाबों पर कब्जा कर मिट्टी भरते गए और वर्तमान में नगर निगम के रिकॉर्ड के अनुसार तालाब की संख्या 100 से 125 तक सिमट कर रह गई है। इस अनुसार तकरीबन 200 तालाब को भर दिया गया है।
वहीं स्थानीय सुनील कुमार ने बताया की यहां सरकारी डबरा था। जिसमे मछुआरों के द्वारा मछली, पानी फल सिघहरा होता था। जिसका टेंडर संबंधित विभाग से होता था। वही उन्होंने बताया कि हम यहां पिछले 35 साल से रह रहे है। इसे एक सप्ताह के अंदर मिट्टी से दिया गया है। भू माफिया के द्वारा रात में, दिन में हमेशा मिट्टी भड़ा जाता था। भरने के समय यहां भीड़ रहता था। पुलिस भी नही आती थी।
वहीं स्थानीय सतो कुमार सहनी ने कहा कि आज से 10-15 साल पहले मछुआ समिति के कुछ लोग इस तालाब में मछली पालन करते थे। लेकिन बाद कोई कारण से पालन नहीं हुआ। जिसके चलते पोखर कचरा हो गया। पूरा पोखर दलदल हो गया। इसके बाद आदमी सब थोड़ा-थोड़ा भरना शुरू कर दिया। करीब 6 महीना पहले एक आदमी ने आधा कट्ठा जमीन को भर लिया। आज से 2 साल पहले भी जब काम हो रहा था। तब एक चाय पत्ती के व्यवसाई ने इस पोखर पर दावा ठोका था। उस समय विश्वविद्यालय की थाना यहां आई थी और कागज मांगा गया था। इसके बाद अगला आदमी वहां पेपर जमा किया, उसके बाद कोर्ट में मामला चल गया। कोर्ट से अगला पार्टी डिग्री लेकर बोल रहा है कि हमारा जमीन है। वही उन्होंने बताया कि मिट्टी भराई का काम आज से ठीक आठ नौ दिन पहले हुआ है।
वहीं दरभंगा जिलाधिकारी राजीव रौशन ने कहा कि इस संबध में अंचलाधिकारी से दूरभाष पर बातचीत में उनके द्वारा बताया गया की पोखर से संबंधित मामला अपर उप समाहर्ता न्यायालय में चल रहा था। जमाबंदी रद्द करने के संबंध में वहां से परिवादी के संबंध में जो आदमी है, उनके पक्ष में निर्णय हुआ। वही उन्होंने कहा कि सदर अंचलाधिकारी को सुझाव दिया गया है कि इस मामले को शीघ्र मेरे न्यायालय में अपील दायर करे, और तत्काल स्थल पर कोई भी आदमी जब तक मामला लंबित रहता है। कोई भी उसको भरने या उसमे निर्माण की कोई गतिविधि नही करे। वही उन्होंने कहा की जो भी हमारे सार्वजनिक तलब पोखर है। वह जलजीवन हरियाली का हिस्सा है और जलजिवन हरियाली के अंतर्गत उसे अतिक्रमण मुक्त कराना है।
जहां तक निजी पोखर या तालाब का है, तो स्वामित्व इसमें भी कई कोर्ट के डिसीजन है। उसके स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं करना है। इसके लिए जो हमारे रेवेन्यू के अधिकारी है। उनको इस चीज पर ध्यान देने की अवश्यकता है। जो हमारा जल निकाई है, उसका सावरूप बदलने से हमारे पर्यावरण में पर नकारात्मक असर पड़ता है। वही उन्होंने कहा कि जमाबंदी रद्दी करण का बात अपर समाहर्ता के न्यायालय में था। उसमे क्या दस्तावेज दिखलाया गया है। परंतु जमावंदी रद्द करने के प्रस्ताव को खारिज किया गया है और जमाबंदी जारी रखने की बात की गई है। जिसपर मैने सीओ को आदेश दिया है की अगर अपर समाहर्ता का कोई आदेश है तो उसके विरुद्ध अपील मेरे न्यायालय में दाखिल कर सकते है।
दरभंगा से अशोक ठाकुर की रिपोर्ट