बिहार का यह ‘उद्योग’ इतिहास बनने के कगार पर! हुई 94.4% की गिरावट!

एक दौर था, जब बिहार ‘अपराध की राजधानी’ के रूप में पहचाना जाता था। यहां कानून-व्यवस्था अपराधियों के पैरों तले रौंदी जाती थी। खाकी का खौफ खत्‍म हो गया था। अपहरण ने उद्योग का रूप ले लिया था। ये बात साल 2004 की है लेकिन अब बिहार उस दौर से बाहर आ चुका है। अब सुधार की मिसाल बनता जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार ने एक ऐसा सफर तय किया है, जहां संगठित अपराध की जड़ें हिल गई हैं और पुलिस का इकबाल बुलंद हुआ है। अपहरण, हत्या, डकैती और राहजनी, वो अपराध जिनकी वजह से बिहार की छवि पूरे देश में दागदार थी, अब गिरावट की राह पर हैं।

बिहार का यह ‘उद्योग’ इतिहास बनने के कगार पर! हुई 94.4% की गिरावट!
Image Slider
Image Slider
Image Slider

PATNA : एक दौर था, जब बिहार ‘अपराध की राजधानी’ के रूप में पहचाना जाता था। यहां कानून-व्यवस्था अपराधियों के पैरों तले रौंदी जाती थी। खाकी का खौफ खत्‍म हो गया था। अपहरण ने उद्योग का रूप ले लिया था। ये बात साल 2004 की है लेकिन अब बिहार उस दौर से बाहर आ चुका है। अब सुधार की मिसाल बनता जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार ने एक ऐसा सफर तय किया है, जहां संगठित अपराध की जड़ें हिल गई हैं और पुलिस का इकबाल बुलंद हुआ है। अपहरण, हत्या, डकैती और राहजनी, वो अपराध जिनकी वजह से बिहार की छवि पूरे देश में दागदार थी, अब गिरावट की राह पर हैं।

94.4% की गिरावट, अपहरण उद्योग अब इतिहास बनने की कगार पर

बिहार पुलिस के आंकड़ों की मानें तो साल 2004 में बिहार में फिरौती के लिए अपहरण के 411 मामले दर्ज हुए थे। सरकार बदली और बिहान ने भी सोच बदली। जिसका नतीजा है कि बिहार पुलिस के अपहरण के आंकड़ों में भी सुधार हुआ। साल 2025 में अब तक फिरौती के लिए अपहरण के सिर्फ 23 मामले सामने आए हैं।

यानी बीते दो दशकों में 94.4% की गिरावट दर्ज की गई है। मालूम हो कि 2009 में ही फिरौती के लिए अपहरण का आंकड़ा गिर कर 80 पर आ गया था। 2013 में और घटकर 70 पर आ गया। इसके बाद लगातार इस आंकड़े में गिरावट दर्ज की गई। साल 2024 में फिरौती के लिए अपहरण के 52 मामले सामने आए। ये आंकड़े खुद गवाही देते हैं कि बिहार में अपराधियों की अब नहीं चल रही।

हत्या के मामलों में भी 11.5% की कमी

जहां 2020 में बिहार में हत्या के 3,149 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं 2024 में ये संख्या घटकर 2,786 रह गई। यह न सिर्फ अपराध के आंकड़ों में गिरावट है, बल्कि जनता के भीतर बढ़ते सुरक्षा-भाव और अपराधियों के भीतर कानून के डर की भी पुष्टि करता है। 2004 में हत्या के 3,861 मामले और 2003 में 3,652 मामले दर्ज हुए थे, जो बताता है कि अपराध पर नियंत्रण का यह सिलसिला पिछले एक दशक में रफ्तार पकड़ चुका है। जिसका नतीजा है कि बीते चार साल के दौरान हत्‍या के मामले में 11.5 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।

बिहार की सबसे बड़ी बदनामी का दौर लगभग खत्‍म

नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार पुलिस और प्रशासन ने कानून व्यवस्था को लेकर जो नीति अपनाई है, वो आज रंग ला रही है। आधुनिक तकनीक, तेज कार्रवाई और जवाबदेही की संस्कृति ने अपराधियों के मन में कानून का डर पैदा किया है। खासतौर पर बिहार का 'कुख्यात अपहरण उद्योग', जो एक समय राज्य की सबसे बड़ी बदनामी का कारण था, अब लगभग खत्म हो चुका है।

अब भय नहीं, विकास की पहचान बना बिहार

राज्य सरकार के प्रयासों से बिहार की छवि और कानून-व्यवस्था दोनों में सुधार हुआ है। बिहार समग्र विकास के नक्शे पर तेजी से उभर रहा है। बिहार उस दौर से बाहर आ चुका है जिसमें केवल यहां के अपराध की चर्चा होती थी। प्रदेश अब हर उस राष्ट्रीय चर्चा में शामिल है, जहां विकास की बात होती है। हर घर नल का जल, जीविका दीदीयों के जरिए महिला सशक्तिकरण, बिहार पुलिस में महिलाओं की सर्वाधिक संख्‍याए और मखाना बिहार को ग्‍लोबल पहचान दे रहा है।